आप विचार वान व्यक्ति हैं तो मैं आप से पूछना चाहता हूं 

आप विचार वान व्यक्ति हैं तो मैं आप से पूछना चाहता हूं 

आलेख :-रोशन लाल अग्रवाल 
  प्रिय मित्रों
हम सब लोग कथित रूप से स्वतंत्र और समझदार हो गए हैं किंतु हम जिस चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं आज भी हमें अपनी मूर्खता समझ में नहीं आ रही है। यह दुर्भाग्य की बात है कि किसी समय ब्रिटेन के समुद्री लुटेरों ने आधी से अधिक दुनिया पर कब्जा कर लिया और पूरी दुनिया को जमकर लूटा और अनगिनत अत्याचार भी किए लेकिन इसके बाद भी आज उन्हें किसी भी देश की सरकार अपराधी सिद्ध नहीं कर पाई और ना ही उनके द्वारा लूटे गए धन के बारे में कुछ भी रहस्य जान सकी।
यह बात भी सत्य है कि नेहरू शरीके महामूर्ख और चरित्रहीन तथा अंग्रेजों के अंधभक्त व्यक्ति को देश के अहिंसा सत्य और अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाने के षड्यंत्र के तहत एक व्यक्ति हर समय अंग्रेजों का संकट मोचन ही क्यों दिखाई देता है और आज भी वह विश्व स्तर पर राष्ट्रपिता कहला रहा है।
हो सकता है कि कुछ वर्षों बाद मुझे भी कालीचरण की तरह कुछ भी आरोप लगा कर देश को गुमराह करने वाला व्यक्ति घोषित कर दिया जाए और अनेक लोग तो जो पहले जनसंघ के समय से ही अपनी राष्ट्रीयता और राष्ट्रभक्ति के लिए कभी संदेह के दायरे में नहीं आए अब वही लोग विवादास्पद क्यों हैं और सत्ता में बैठे लोग पहले की तरह देश की जनता को सच्चाई नहीं बता रही है और लगातार झूठ पर झूठ बोले जा रही है।
मैं किसी भी सरकार या किसी भी पार्टी पर कोई आरोप नहीं लगा रहा हूं लेकिन यह तो स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ ही रहा है कि वर्तमान मोदी सरकार और योगी सरकार पूरी कठोरता से पीयूष जैन की अकूत संपत्ति की गहन तलाशी में लगे हुए हैं और गुप्तचर एजेंसियों की विशाल खोज और नोट गिनने वाली 14 मशीनें भी नोट गिनते गिनते खराब हो रही हैं और अंत में सारा काम मजदूरों की सहायता से पूरा किया जा रहा है लेकिन केंद्र सरकार और राज्य सरकार देश की जनता को सच्चाई क्यों नहीं बता पा रही है।
मैं महामूर्ख कालीचरण की तरह कोई अर्थहीन बात आपके सामने नहीं रख रहा हूं और मैं गांधी को गाली और गोडसे को महिमामंडित करने का कोई अपराध भी नहीं कर रहा हूं लेकिन देश की जनता आज भी इन दो लोगों पर एक राय क्यों नहीं हो पा रही है और मेरी पोस्ट को भी मेरी मोदी सरकार से अंधभक्ति क्यों मान रही है जबकि मैं बार-बार यह कह रहा हूं मैं मोदी जी की आर्थिक नीतियों से कतई सहमत नहीं हूं और यह स्पष्ट रूप से घोषित कर रहा हूं कि इससे भारत में या विश्व में कुल संख्या के 90% लोग हैंड ट्रू माउथ दरिद्र दुखी अभावग्रस्त और गुलाम क्यों बने हुए हैं
मैं महा बुद्धिमान लोगों से यह भी जानना चाहता हूं कि हम पीयूष जैन की काली कमाई को आंख फाड़ कर क्यों देख रहे हैं क्योंकि वह तो एक व्यक्ति मात्र है लेकिन क्या उसके दुष्कर्म ओं के लिए हमारी व्यवस्था जिम्मेदार नहीं है और इसीलिए मैं यह भी कहना चाहता हूं कि अगर पीयूष जैन की हत्या कर दी जाए और उसकी सारी दौलत भी छिपी की छिपी रह जाए तो फिर गुप्त चरणों की और विशेषज्ञों की विशाल खोज अपने लक्ष्य में सफल हो जाएगी क्या और इस सारी कार्यवाही का अंक क्या है और उसका मूल कारण क्या है?
आज लगभग 75 वर्षों के बाद भी उस संविधान की शपथ भगवान के नाम पर क्यों दिलाई जा रही है जो भारत ही नहीं पूरी दुनिया को भ्रमित करने वाली व्यवस्था बना रहा है और पूरी दुनिया में मुट्ठी भर शासक और समाज की सारी पूंजी और धन दौलत के मालिक क्यों बने हुए हैं और विश्व में 90% लोग भूखमरी का शिकार क्यों हो रहे हैं?
देश का कोई भी विद्वान व्यक्ति यह क्यों नहीं बता पा रहा है कि संविधान सारी विसंगतियां विपदा विकृतियों और बेईमानी आदि के लिए मूल रूप से जिम्मेदार क्यों नहीं है और इसको न्याय के आधार पर इसे पुनर निर्मित क्यों नहीं किया जा सकता।
आज भी मूर्खों की तरह सत्ता में बैठे हुए लोग देश की सारी जनता के आंखों में धूम क्यों जग रहे हैं और सत्ता में बैठे हुए लोग विपक्ष को अपना देशद्रोही शत्रु मानने की गलती क्यों कर रहे हैं और देश में और देश की संसद में पार्टी के आधार पर क्यों सारे मतभेद उठा ले जाते हैं और असली लोकतंत्र के लिए कौन सी बुनियादी बात है जिसे पूरी तरह सर्व सम्मत और संदेह मुक्त कहां जा सके?
आप विचार वान व्यक्ति हैं तो मैं आप से पूछना चाहता हूं कि इस तरह के अनेकों मूल प्रश्न क्या आपके दिमाग में नहीं उभरते और इन सारे गंभीर प्रश्न पर आप लोग अपनी सही प्रतिक्रिया क्यों नहीं बताते या अपने आप को महामूर्ख और अज्ञानी क्यों नहीं मानते।
आप यह अच्छी तरह मानते हैं कि असली लोकतंत्र में देश की सारी जनता ही उसकी चला चल सभी प्रकार की संपत्तियों की समान रूप से मालिक होती है किंतु व्यवस्था की दृष्टि से यही बात आपके हृदय में क्यों नहीं घुसती और आपके विवेक का दरवाजा किसने बंद कर रखा है?
मैं उम्र के अंतिम पड़ाव में यह सारे मूल प्रश्न तो आपके सामने रख रहा हूं लेकिन वर्षो के अथक प्रयास के बाद भी आपकी बुद्धि क्यों कुंठित और आज भी सत्ता में बैठने वाला हर व्यक्ति उस संविधान की परमात्मा के नाम पर शपथ क्यों लेता है जबकि सारे षड्यंत्र की जड़ वही संविधान है जिसे ब्रिटेन के समुद्री लुटेरों ने बहुत ही चालाकी के साथ पूरी दुनिया में लोकतंत्र के नाम पर स्थाई बना दिया है और मुट्ठी भर लोग ही सभी लोकतांत्रिक कहे जाने वाले देशों में असली शासक और प्रशासक बने हुए हैं और अपवाद के रूप में कुछ ईमानदार और गंभीर चिंतक यदि अति महत्वपूर्ण पदों पर पहुंच भी जाते हैं तो थोड़े से समय के बाद ही ऐसे लोग सत्ता से बिल्कुल अलग होने का निर्णय लेने के लिए या मूर्ख कहलाने के लिए या किसी गंभीर षड्यंत्र के शिकार बनाकर कुत्ते की मौत मरने के लिए मजबूर क्यों हो जाते हैं?
मेरे समझाने के लगातार प्रयास के बाद भी आपके खोपड़े में यह बात क्यों नहीं घुस रही है कि समाज में वास्तविक न्याय आर्थिक न्याय के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता और विश्व की सारी तथाकथित न्याय व्यवस्था खुद दूर तो बेईमानों षड्यंत्र कार्यों का पालन पोषण कैसे कर रही है और आप पागलों की तरह पीयूष जैन की अकूत दौलत को देखे जा रहे हैं लेकिन आपके दिमाग में यह प्रश्न नहीं घुस रहा है कि जब एक पीयूष जैन के पास इतनी धन-दौलत छिपी हुई थी और देश की सारी व्यवस्था बिल्कुल अनजान थी तो फिर इस देश के अनगिनत पीयूष जेनों के हाथों में देश की कुल कितनी धन संपत्ति होगी और हमारी व्यवस्था पूरे समाज को वास्तविक सत क्यों नहीं बता पा रही है और रोज की खबरों में आज तक वह पूरे शख्स को संदेह रहित स्थिति में कब तक बता देगी और उसमें देश के हर नागरिक का जन्म से मृत्यु तक समान अधिकार क्या होगा क्योंकि यह बात उसे क्यों नहीं पता होनी चाहिए और यदि नहीं होगी तो फिर देश का यह समझदार और बुद्धिजीवी कहां जाने वाला वर्ग क्या काम आएगा और असली सवाल तो यही है कि देश की जनता को सब कुछ सच्चाई के साथ चलाने वाली व्यवस्था कैसे बनेगी और पूरी दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम की व्यवस्था कब तक मिल जाएगी और इसे देने के लिए आपके पास क्या कोई दूसरा सूत्र है?
मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं की वास्तविक न्याय तो केवल वही है जो सबके लिए समान रूप से उपलब्ध हो और हर व्यक्ति को भय मुक्त अभाव मुक्त सम्मानजनक स्वतंत्र और सुखदाई जीवन वाली व्यवस्था प्रदान कर सके।
मैं आपको भावनाओं में नहीं बल्कि तर्क और विवेक शीलता के साथ गंभीर विचारक होने के लिए प्रेरित और बाध्य करना चाहता हूं क्योंकि मेरी निष्ठा तो पूरी मानवता के प्रति है और होनी भी चाहिए क्योंकि मैं भारत की सनातन संस्कृति के मूल अर्थ को समझ गया हूं लेकिन उसे न तो आपको मैं समझा पा रहा हूं और मैं ही आप खुद समझने का प्रयास कर रहे हैं।
क्या हर विद्वान की आंखों के सामने एक सुंदर भविष्य नहीं दिखना चाहिए जो सबके लिए सुखदाई हो सभी एक दूसरे खीरे को सम्मान दें और सभी के बीच विश्वास सद्भाव आत्मीयता और प्रेम उमड़ता रहता हो ?????
लेखक रोशन लाल अग्रवाल एक ख्यातिप्राप्त आर्थिक चिंतक समाजशास्त्री हैं 

आप विचार वान व्यक्ति हैं तो मैं आप से पूछना चाहता हूं