
रोला से चौधर गा और चौधर से जाटां गी
आलेख :-राजेंद्र गोदारा
किसान आंदोलन शुरु करने का मुख्य श्रेय पंजाब को जाता है ये पंजाब के सिंह ही थे जो रास्ते की तमाम सरकार द्वारा खड़ी की गई बाधाओं को पार करके दिल्ली पहूंचे और तीन मुख्य बोर्डर रोक कर आंदोलन का सुभांरभ किया बलवीरसिंह रजोवाल, डाक्टर दर्शन पाल, अजमेरसिंह लक्खोवाल, जोगेंद्रसिंह उग्राहा, बूटासिंह बूर्जगिल, जगजीत सिंह दलेवाल सभी आंदोलनों से निकल हुए परिपक्व चेहरा थे तब इन्हीं में से एक चेहरा राकेश टिकैत भी थे पर धीरे धीरे आंदोलन का संचालन तिखे शब्दों में किसानों का पक्ष रखने , समय पर किये गये कटाक्ष , सवाल रखने के तरीके सोशल मीडिया में सुझवान जवाबों ने राकेश टिकैत को समस्त आंदोलन का अगुवा बना दिया और जब एक दिन लगा अब आंदोंलन खत्म होने वाला है तब मौके के हिसाब से
आखिर राकेश टिकैत को भावपूर्ण अपील करनी पड़ी और किसान नेता के आंसुओं ने किसान आंदोलन को नई ऊर्जा देने का काम किया सवाल ये है कि ऐसी घड़ी क्यों आई या क्यों लाई गई 26 जनवरी की लाल किला पर हुई घटना के बाद लगने लगा कि अब किसान आंदोलन मंद पड़ने लग गया है और उसके बाद ट्रेक्टर ट्राली के साथ वापिस जाने लगे तो उनके साथ दिल्ली के तीन बोर्डर पर बैठे अन्य किसान भी वापिस चल पड़े इसका एक बड़ा कारण तो दो महिने से ज्यादा वहां ठहरे होना तो था ही साथ में एक और मुख्य कारण
लाल किला की वारदात से किसानों को लगा कि वो भी उसके लिए दोषी है हालांकि आम किसानों का या कह लिजीये 99 प्रतिशत किसानों व किसान नेताओं का उस घटना से कोई लेना देना नहीं था पर ट्रेक्टर ट्राली लेकर रैली निकालने वाले हर किसान को लग रहा था कि वो भी कहिं ना कहिं उसके लिए दोषी है दीप सिद्धू या लक्खा जितना ना सही पर कुछ ना कुछ दोष उसका भी जरूर है किसान नेता भी चाहे मूंह से ना स्वीकार करें पर ट्रेक्टर रैली बुलाने की जिद्द तो उनकी ही थी उसमें कुछ हिंसा वाले तत्व घुस गये तो तो उसके लिए जिम्मेदारी तो उन नेताओं की ही थी वो चाहे मीडिया के सामने ना स्वीकार करें पर मन से वो भी जानते है कि अगर किसी आंदोलन में गड़बड़ होती है तो गड़बड़ करने वाला जितना ही दोष आयोजन कर्त्ता का भी होता है यही नहीं तीनों बोर्डर पर बैठे किसान और यहां तक की घर में बैठे किसान और खेत में काम कर रहे किसान भी मन ही मन समझ रहे थे कि ये बहुत गलत हुआ और लगभग 90 प्रतिशत किसान उस आंदोलन के समर्थन में थे इसलिए वो सब खुद को भी थोड़ा बहुत दोषी मान रहे थे
ये किसानों की वो सबसे बड़ी ताकत थी कि आंदोलन से हजार किलोमीटर दूर बैठे किसान भी खुद को मायुस और ठगा हुआ महसुस कर रहा था क्यों की उसे लगा गलत हुआ ये स्वत: किसान के मन की देशभक्ती थी ये वो राष्ट्रवाद था सत्ता में बैठे लोगों को नहीं दिखाई दिया 26 जनवरी की शाम से किसान वापिस जाने लगे 27 को भी जाते रहे आग में घी का काम राकेश टिकैत के बड़े भाई और भारतीय किसान युनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकेत की उस अपील ने किया कि ट्रेक्टर रैली के बाद रैली वाले किसानों के साथ गाजीपुर बोर्डर पर बैठे आम किसान भी वापिस घर लौट जाये क्यों कि लाल किला की घटना गलत थी और उसने आम किसानों को ठगा है 28 जनवरी आंदोलन के लिए सबसे भारी पड़ा हुआ दिन था तब रात को गाजीपुर बोर्डर पर 300-350 किसान ही रह गये थे पर टिकरी बोर्डर व सिन्धू बोर्डर भी संख्या बहुत ज्यादा नहीं थी शायद दोनों जगह एक हजार एक हजार के लगभग किसान रह गये थे
और सबसे दुख वाली बात ये थी कि तीनों बोर्डर पर बैठे किसानों और उनके नेताओं का मनोबल टूट चुका था और उन सभी नेताओं को लग रहा था कल किसान आंदोलन का अंतिम दिन होगा सभी किसान नेताओं ने गिरफ्तारी देने की तैयारी कर ली थी और उन सबको पता था कि कल नाम मात्र के किसान तीनों बोर्डर पर रह जाने है तब सरकार का कहर टूटना लाजमी है बिजली पानी के क्नेक्शन पहले ही काट दिये गये थे अस्थाई शौचालय हटाये जा रहे थे और 28 की तारीख की रात को जिस तरह गाजीपुर बोर्डर पर किसानों ने पांच गुणा ज्यादा दिल्ली पुलिस, यूपी पुलिस , अर्द्ध सैनिक बल और रैपिड एक्शन फोर्स के जवान वहां पर इकट्टे हुए या किये गये किसान नेताओं को पता था उस रात नहीं तो अगली रात बाकी दो बोर्डर पर भी वो ही होने वाला था
दिल्ली पुलिस तुम लठ्ठ बजाओ हम तुम्हारें साथ है ---
गाजीपुर बोर्डर पर पुलिस के शिर्ष अधिकारीयों के साथ बातचीत में राकेश टिकैत ने गिरफ्तार होने पर सहमती दे दी थी की शाम को यूपी के दो विधायक नंदकिशोर गुर्जर व शायद सुनिल वर्मा अपने लगभग 500-600 समर्थकों के साथ आये और जोर जोर से नारे लगाने लगे कि
"दिल्ली पुलिस तुम लठ्ठ बजाओ हम तुम्हारे साथ है"
इन समर्थकों के हाथ मे लाठी, डंडे , लोहे की राड व मारने कुटने वाले अन्य साजो समान थे ये फ्लाई ओवर के ऊपर व नीचे दोनों जगह पर थे और किसानों से वह जगह खाली करने व भाग जाने को कह रहे थे शायद योगी महाराज को लगा कि डरे हुए किसानों को और अधिक डराने का मौका है और मौका हाथ से निकल ना जाये इसलिए अपने विधायकों गुर्जर व वर्मा को अपने समर्थकों के साथ वहां भेजा कि राकेश टिकैत का मनोबल और टूटे और और अपने सामने अपने किसान साथियों की पिटाई दिखाकर उसे सोशल मीडिया के जरिये प्रचार कर के दिखाये कि राकेश टिकैत किसी किसान आंदोलन का नेतृत्व करने के लायक नहीं है
और यही वो पल था जब राकेश टिकैत को लगा किअब डरने से काम चलने वाला नहीं है और जैसा कि एक विज्ञापन में आता है डर के आगे जीत है उन्हें लगा कि उनकी गिरफ्तारी के बाद उनका साथ देने वाले किसानों को मारा पीटा जायेगा तब उन्होंने वो भावुक अपील की रोते हुए छोटे टिकैत ने कहा कि यहां का पानी बिजली बंद हो चुका है और वो पानी तभी पियेंगें जब उनके गांव से पानी आयेगा उन्होंने ये नहीं कहा कि किसान गाजीपुर की तरफ आयें पर ये आने का नां कहने के बावजूद उनकी अपील बहुत कुछ कह गई और यही अपील पश्चमी उत्तरप्रदेश के किसानों ने सुनी और तत्काल प्रतिक्रिया हुई और तभी योगी जी को महसूस हो गया कि ज्यादा अति भी माड़ी हुए तब योगी ने भी राकेश टिकैत से बात की , पर ये मेरी आज की पोस्ट का विषय नहीं
विषय तो है चौधर का --
तब नरेश टिकैत ने चौधरी अजीत सिंह व जयंत चौधरी से बात की, तब उन्हें याद आया कि अजीत सिंह व जयंत चौधरी को हराना गलत था 2014 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार की खिलाफत व 2019 में पुलवामा से जगे नई तरह के राष्ट्रवाद में पश्चीम यूपी के जाट भी आ गये थे और
उन्होंने उस चौधरी चरणसिंह के बेटे व पौते तक को हरा दिया जो किसान के पर्यायवाची थे भारत की राजनिती में अगर किसान शब्द को अधिकारिक मान्यता मिली तो वो चौधरी चरणसिंह के 1977 में केन्द्र में मंत्री बनने और प्रधानमंत्री बनने से शुरु हुई मैं मानता हूं उससे बहुत पहले से सरदार बलदेव सिंह , सरदार स्वर्णसिंह, रामनिवाश मिर्धा व नाथूराम मिर्धा से लेकर ऐसे अनेक बड़े नेता रहे जो केंद्र में मंत्री रहे खुद सरदार पटेल किसान थे तो उनसे बड़ा नाम और क्या होगा ? कौन होगा ?
पर सच्चाई यही है कि किसान शब्द को मान्यता चौधरी चरणसिंह ने ही दिलवाई और 2014 में तो नहीं पर 2019 में चौधरी अजीत सिंह व जयंत चौधरी की हार में टिकैत बंधू नरेश व राकेश दोनों का अहम रोल था उन्होंने इस चुनाव में संजीव बलियान व सत्यपाल सिंह का खुल कर साथ दिया था और वो ही गम राकेश टिकैत को शाल रहा था कि अब अजीत सिंह व जयंत चौधरी का उसके प्रति , किसान आंदोलन के प्रति कैसा रवैया रहेगा ? क्यूं कि अब उनकी सहायता के बिना आंदोलन तो खत्म ही समझों
चौधर से जाटां गी - पर असली मामला चौधर का था किसान नेता बाबा महेंद्रसिंह टिकैत ने जब तक चौधरी चरणसिंह इस दुनिया में थे बाबा टिकैत ने उन्हें सदैव अपना नेता माना उन्होंने कभि वो लक्ष्मण रेखा पार करने कि कौशिश नहीं की जो चौधरी चरणसिंह के सबसे बड़े किसान नेता के रूप में थी पर चौधरी चरणसिंह के निधन के बाद बाबा टिकैत ने किसानों के सर्वमान्य नेता की छवि बना ली वे ज्यादातर समय गैर राजनितीक रहे पर उन्होंने स्वर्गीय चौधरी चरणसिंह को किसानों का सर्वकालिन सर्वमान्य सबसे ऊपर का स्थान बताया बीच में एक दो बार बाबा टिकैत ने भी किसानों के एक नये दल जो वेस्टन यूपी तक ही सिमित था विधानसभा चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन करवा कर समर्थन दिया पर तब नां भाजपा का कोई बड़ा वजूद था ना बाबा टिकैत समर्थित उस नये क्षेत्रीय किसान दल का
नतिजन मामूली सी विधानसभा सीटों पर लड़े उस किसान दल की भ्रुण हत्या हो गई और उसका कुछ ही समय बाद मुलायमसिंह यादव के दल में विलय हो गया तब के बाद अपने निधन तक बाबा टिकैत पूरी तरह गैर राजनितीक बने रहे पर बाबा टिकैत की चौधरी अजीत सिंह से सदैव कम ही बनी और कम बनने के का मुख्य कारण था रोऴा से चौधर का
चौधर से जाटां गी -- चौधर का ये रोला कभि चौधरी चरणसिंह व चौधरी देवीलाल के बीच भी रहा यध्पी चौधरी देवीलाल ने लगभग ताजिंदगीं चौधरी चरणसिंह को अपना नेता माना पर एक बार इन दोनों में ही ठन गई थी मौका था सोनिपत लोकसभा के उपचुनाव का
शायद 1981 का समय था जब हरियाणा में सोनिपत लोकसभा का उपचुनाव था तब चौधरी देवीलाल हरियाणा के एकछत्र किसान नेता के तौर पर खुद को साबित करना चाह रहे थे इसलिए विधायक होते हुए भी सोनिपत लोकसभा में खड़े हो गये उनके सामने कांग्रेस के धर्मपाल मलिक थे तब चौधरी चरणसिंह ने किताबसिंह मलिक को लोकदल उम्मीदवार के तौर पर उतार दिया यही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री होते हुए भी उपचुनाव में किताबसिंह मलिक के लिए प्रचार करने आये उस जमाने में कोई प्रधानमंत्री या पूर्व प्रधानमंत्री उपचुनाव में प्रचार नहीं करते थे पर चौधरी चरणसिंह ना केवल प्रचार में आये बल्कि चुनाव सभा में उन्होंने जोरदार तरीके से कहा कि
इस देवीलाल का दिमाग खराब हो गया है ये खुद को मुझसे यानि चौधरी चरणसिंह से भी बड़ा जाट नेता समझने लगा है इसका दिमाग ठिकाने पर लाओ
हालांकि वो चौधरी देवीलाल का इलाका था और वहां के लोगों को देवीलाल व्यक्तिगत रूप से भी जानते थे
पर चौधरी चरणसिंह की अपील ने काम किया और हरियाणा की जनता ने चौधरी चरणसिंह को बड़ा चौधरी माना और देवीलाल चुनाव हार गये धर्मपाल मलिक चुनाव जीत गये और जाटों ने चौधरी चरणसिंह को सबसे बड़ा चौधरी माना
एक और बात साफ कर दूं किसानों में खासकर जाटों में चौधरी चरणसिंह का एक अलग ही रूतबा है हरियाणा का चौटाला परिवार हो राजस्थान का मिर्धा परिवार हो मदेरणा परिवार हो ओला परिवार हो हरियाणा का बंसीलाल परिवार और यहां तक की दिनबंधू सर छोटूराम का परिवार हो सब बड़े नाम है बहुत बड़े नाम है पर जो नाम चौधरी चरणसिंह का है इन में से कोई भी उसके आसपास भी नहीं ठहरता जाट चाहे किसी भी पार्टी दल या संगठन का समर्थक हो पर चौधरी चरण सिंह के नाम का मान सम्मान सभी करते है इसलिए चौधरी चरणसिंह का परिवार भी जाटों में विशिष्ठ सम्मान रखता है जो पहचान जाट समाज को चौधरी चरणसिंह ने दी वो दूसरा कोई भी नहीं दे सका सर छोटूराम व चौधरी देवीलाल अपने आप में बहुत बड़े नाम है पर जाट नाम की असली पहचान वास्तव में चौधरी चरणसिंह के नाम के साथ ही जुड़ी हुई है
पर बाबा टिकैत और चौधरी अजीतसिंह ने कभी एक दूसरे की सार्वजनिक आलोचना नहीं की, पर बाबा ने कभी अजीतसिंह को अपने से बड़ा किसान नेता कभि माना भी नहीं पर चौधरी अजीतसिंह सात बार सांसद बनें वे सिर्फ 1998,2014 व 2019 को छोड़ कर 2014,2019 में जयंत चौधरी भी चुनाव हार गये 2014 में तो जयंत चौधरी को हराने के लिए मोदी जी को हेमामालिनी तक को लाना पड़ा पर 2019 के लोकसभा चुनावों में टिकैत बंधू भाजपा के साथ हो गये नतिजतन चौधरी चरणसिंह का बेटा और पोता दोनों हार गये
राकेश टिकैत की भावूक अपील के बाद नरेश टिकैत ने चौधरी अजीत सिंह व जयंत चौधरी दोनों से बात की और महापंचायत में भी अपनी गलती को माना बदले में जयंत चौधरी ने सिर्फ इतनी शर्त रखी की , कि आज के बाद वेस्टन यूपी के जाट राजनिती में हिंदू मुसलमान नहीं करेंगें तभी वो अपना समर्थन देंगें जवाब में मुजफ्फरनगर, बागपत, सिसौली, मेरठ , बड़ौत, बिजनोर सब जगह किसानों ने फिर कभि हिंदू मुसलमान ना करने की कसम खाई और एक तरह से टिकैत बंधूओं ने चौधरी चरणसिंह के परिवार को सबसे बड़े किसान नेता के परिवार के रूप में मान्यता दी जिनकी हार हर किसान की निजी हार होती है इसे सार्वजनिक रुप से स्वीकार किया
और किसान आंदोलन को नई आक्सीजन मिली सिंधू बोर्डर व टिकरी बोर्डर के किसान नेताओं ने भी स्वीकार किया कि राकेश टिकैत की उस अपील से किसान आंदोलन को दोबारा खड़ा कर दिया और अब लगता है किसान आंदोलन कुछ तो अवश्य हासिल करेगा
पोस्ट बहुत लंबी हो गई है आपको पसंद आई तो अगली किस्त भी लिखूंगा वैसे मैं किसान के नाम पर केवल जाट को नहीं खड़ा कर रहा हूं किसान की कोई जाति या धर्म नहीं होता खेती करने वाले सभी किसान है
धन्यवाद सहित
Rajender Godara
01 फरवरी 2021
साभार :-https://www.facebook.com/rajender.godara.925