कभी खाली हार तो कभी फूलों का हार 

कभी खाली हार तो कभी फूलों का हार 

आलेख:-राजेंद्र गोदारा
क्रिकेट पर कम लिखता हूं पर जब भी मौका हो अवश्य लिखता हूं हार के बाद टीम में गलती निकालना आसान लगता है पर मैंने तर्कों के साथ ये प्रयास किया है एक बार आप भी देखें
टीम जीत के लिए एक मान्यता प्राप्त टीम कंबिनेशन होता है जिसका सभी देश पालन करते है 15 सदस्यीय टीम में 7 बल्लेबाज एक विकेट कीपर 5 तेज गेंदबाज व दो स्पिनर होते है खासकर इंग्लैंड जैसे देश में अगर आप के पास एक बेटिंग आल राऊंडर है तो एक बल्लेबाज कम हो जाता है और अगर कोई तेज गेंदबाज बढिया बल्लेबाज भी हो तो तो एक तेज गेंदबाज घट जाता है भारत जैसी टीम चार तेज गेंदबाज के साथ आती है एक अतिरिक्त स्पिनर या स्पिन आल राउंडर साथ ले लेते है 
पर कीपर सदैव एक ही रखते है अगर विश्वसनीय विकेट कीपर ना हो तो ही रिजर्व कीपर रखते है वरना अगर चोट ग्रस्त हो तो भी 24 घंटे में घायल खिलाङी बदलने की सुविधा होती है तो एक जगह कोई टीम क्यों खराब करें ?तब सभी टीम एक ही कीपर रखती है पर
भारत ने तो तीन तीन कीपर महेंद्रसिंह थोनी दिनेश कार्तिक व श्रषभ पंत रख रखे है अब सोचें क्या कार्तिक एक विशुद्ध बल्लेबाज से ज्यादा बढिया बल्लेबाज है ? या रिषभ पंत आंजिक्य रहाणे से श्रेष्ठ बैट्समेन है ? अगर ये दोनों इतने ही अच्छे है तो धोनी को बाहर क्यों नहीं करते हो पर कार्तिक सामान्य प्लेयर है और धोनी के रहते टीम में किसी भी स्थान का हक नहीं रखते और उम्र भी लगभग पैंतीस तो क्या घुमाने के लिए इंग्लैंड ले गए थे पंत युवा है पर तेज पिच पर बेटिंग में कमजोर है और उन्हे टेस्ट कीपर बना रखा है पर धोनी के रहते अंतिम 11 या 15 में उन का कोई स्थान बनता नहीं है 
और विश्वकप 1983 में एक ही कीपर सैयद किरमानी थे और इतने ही मैच भारत ने खेले थे 2011 में भी धोनी इकलौते विकेट कीपर थे अगर तब जरूरत महसूस नहीं हुई तो अब क्यों ?
या अनोखी बात ये है की 2007 में फाइनल में पहुंची सौरव गांगुली की टीम में विकेक कीपर था ही नहीं गांगुली ने बल्लेबाजी मजबूत करने के लिए राहुल द्रविड़ से साल भर पहले ही कीपिंग करवानी शुरू कर दी थी  और पूरे विश्व कप में राहुल द्रविड़ ने अकेले विकेट किपींग की थी और अब तीन तीन कीपर कहां तक न्याय संगत है 
अब हमारे मुख्य चयन कर्ता एम एस के प्रसाद कभी खुद विकेट कीपर रहे हालांकि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में वो सफल नहीं रहे इसलिये उन्हें ज्यादा मौके भी नहीं मिले  शायद वो टीम में विकेट कीपर की भरमार कर के उस का बदला निकाल रहे है पर इस से भारतीय क्रिकेट का बहुत नुकसान हो रहा है आज की तारीख में प्रसाद सिर्फ़ रवि शास्त्री की सुनते है और दोनों को सिर्फ विकेट कीपर दिखाई देते है
अब शुरू से आते है और सभी टीम में छह या सात विशुद्ध बल्लेबाज पर हमारी शुरुआती टीम में मात्र चार रोहित शर्मा शिखरधवन विराट कोहली व के एल राहुल ये कहां तक तर्कसंगत है एक के चोट लग जाये तो ? और लगी भी शिखर धवन को तब रही सही कसर पूरी करने तीसरे कीपर रिषभ पंत को ले आये 1983 के विश्वकप विजेता टीम में गावस्कर श्रीकांत वेंगसरकर यशपाल शर्मा संदीप पाटिल मोहिंद्र अमरनाथ व किर्ती आजाद सहित सात बल्लेबाज थे और इस बार मात्र चार 
2011 की विजेता टीम में सहवाग तेंदुलकर गम्भीर सुरेश रैना विराट कोहली युवराज औऱ अगर यूसुफ पठान को बल्लेबाज मानों तो सात फिर इस बार तीन या चार क्यों ? 
83 की टीम की बल्लेबाजी कितनी मजबूत थी इस बात का अंदाज एक बात से लगाया जा सकता है की उस टीम में इंग्लैंड में भारत के सबसे सफल बल्लेबाज दिलीप वेंगसरकर को सिर्फ एक या दो मैच खेलने को मिले जब की तब वेंगसरकर एकमात्र विदेशी खिलाङी थे जिन्होंने टेस्टों में लार्डस जैसे मैदान में तीन मैचों में तीन शतक लगाये थे यहां वेंगसरकर को कम खिलाने का कारण उन का बोलिंग ना करना मुख्य था इस 14 सदस्यीय टीम में विकेट कीपर सैयद किरमानी के अलावा सुनील गावस्कर श्री कांत दिलीप वेंगसरकर व यशपाल शर्मा के अलावा सभी पार्ट टाइम गेंदबाज थे और इस विश्व कप में सभी ने गेंदबाजी की और कामयाब गेंदबाजी की 
अब माना जाता है भारत की टीम में चार आल रांऊडर विजय शंकर केदार जाघव हार्दिक पांड्या व रवींद्र जदेजा थे इन में आल राउंडर मात्र हार्दिक है जदेजा पर कप्तान व कौच का कभी भी विश्वास नहीं रहा हालांकि सेमी फाइनल में उन्होंने दिखाया की वे किस स्तर के खिलाङी है विजय शंकर को 3 डी हरफनमौला बताया जा रहा था पर वो तो एक डी भी नहीं बन सके और बनते भी कैसे ? विजय शंकर का ना तो प्रथम श्रेणी रिकार्ड में कोई कमाल है ना आईपीएल में जब हार्दिक पांड्या को चोट लगी तब आस्ट्रेलिया दौरे के बाद न्यूजीलैंड में विजय शंकर आये और हर मैच में 20 - 30 रन बनाये व चार पांच ओवर कर एक विकेट ले लेते बस वे कप्तान कोहली व कोच रवि शास्त्री की निगाहों में चढ गए अब अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का दबाव ऐसे चुना खिलाङी कैसे झेल सकता है तब इस 3 डी प्लेयर की बेटिंग चली नहीं बोलिंग पहले मैच के बाद इन्हें कप्तान ने दी नहीं 
तब क्या करते ? अच्छे भले विजय शंकर को चोटिल बता कर मयंक अग्रवाल को चुना पर पहले कभी वनडे खेले नहीं मयंक को खिलाने का जोखिम कौन ले तो वे पेवेलियन में बैठे रहे 
आस्ट्रेलिया दौरे पर बुरी तरह हार के बाद कप्तान कोहली ने कहा था की ये सब केदार जाघव के चोट लगने के कारण हुआ केदार नंबर पांच पर विश्वसनीय बेटिंग करते है और आफ स्पिन के सात आठ ओवर कर के मैच का रूख बदल देते है पर कप्तान अपनी खुद की कही बात भूल गए और या तो केदार को खिलाया नहीं या बोलिंग नहीं दी और देश अपने काम चलाऊ गेंदबाजों से मैच का पासा पलटते रहे पर भारत के कोच कप्तान ने केदार जाघव व विजय शंकर को भी बोलिंग नहीं दी और सेमी फाइनल जैसे अहम मुकाबले में केदार जाघव की जगह दिनेश कार्तिक को तरजीह दी नतीजा !!!! 
83 की विजेता टीम में कपिल देव मदन लाल रोजर बिन्नी  जैसे बोलिंग आल रांउडर थे पर तब भी कपिल देव ने संदीप पाटिल किर्ती आजाद व महेंद्र अमरनाथ को बराबर बोलिंग दी और सेमी फाईनल व फाइनल तो इन काम चलाऊ गेंदबाजों ने ही जीताया खासतौर पर महेंद्र अमरनाथ ने 
2011 की विजेता टीम में युसुफ पठान सुरेश रैना व तेंदुलकर थे पर विश्वकप जीताया युवराज सिंह की काम चलाऊ गेंदबाजी ने पर हमारे कप्तान व कोच का इन सब बातों से क्या लेना देना ??? 
83 की 14 सदस्यीय टीम में कपिल देव मदन लाल बलविंद्र संधू सुनील वालसन व रोजर बिन्नी जैसे पांच तेज या मध्यम गेंदबाज थे पर  इस बार टीम में मोहम्मद शमी भुवनेश्वर कुमार व जसप्रीत बुमराह के रूप में सिर्फ तीन तेज गेंदबाज थे और आल रांउडर हार्दिक पांड्या को जोङ लें तो चार पर इन में से कम से कम दो ने हर बार जोरदार बोलिंग की और इस कमी को कभी महसूस नहीं होने दिया 2011 की टीम में जहीर खान आशीष नेहरा श्रीशांत इरफान पठान चार तेज गेंदबाज थे 
83 की टीम के सुनील वालसन तब देश के सबसे तेज गेंदबाज माने जाते थे हालांकि विदेशी बल्लेबाजों के आगे उन को परखने का मौका कभी नहीं मिला इस विश्व कप में वालसन को एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिला और इस से पहले कभी वो टीम के सदस्य नहीं रहे इस के तुरंत बाद वेस्टइंडीज के खिलाफ शायद पांच या छह मैचों की लंबी वनडे सिरिज थी पर सभी मैचों में वेस्टइंडीज ने एकतरफा जीत दर्ज की शायद क्लाइव लायड विश्व कप की हार का बदला ले रहे थे इस सीरीज में भी वालसन को कोई मैच खेलने का मौका नहीं मिला इस के बाद उन्हें कभी टीम में शामिल ही नहीं किया गया काफी साल बाद एक इन्टरव्यू में सुनील वालसन ने कहा था की वे बस इतने से ही संतुष्ट है की वो विश्व कप विजेता टीम के सदस्य रहे
स्पिन विभाग में इस बार कुलदीप यादव यजुवेंद्र चहल व रविंद्र जदेजा थे चहल व जदेजा ने मौका मिलने पर अच्छा प्रदर्शन किया पर कुलदीप पूरी फार्म में नहीं थे और ये चयनकर्त्ताओं कोच व कप्तान को आईपीएल से ही पता था पर वाशिंगटन सुंदर जैसे युवा और मौका मिलने पर कामयाबी हासिल करने वाले की तरफ ध्यान किस का जाता और वैसे भी कुलदीप यादव और चहल दो साल से लगातार अच्छा खेल रहे थे तब नए पर सोचने का मतलब था ही नहीं ?
1983 की विजेता टीम में इसी इंग्लैंड में तब वर्तमान कोच रवि शास्त्री एकमात्र स्पीनर थे पर उन्हें खेलने का मौका बहुत कम मिला क्यों की वे बल्लेबाजी में कमजोर थे कुछ मित्रों को पता नहीं पर बता दूं की रवि शास्त्री शुरू में सिर्फ बांऐ हाथ के स्पिन बोलर थे बाद में वो विशेषज्ञ ओपनर भी बने पर 83 के विश्व कप के समय तक उन की बल्लेबाजी बहुत कमजोर थी इसलिये उन्हें विश्व कप में मौके नहीं मिले उन की जगह किर्ती आजाद को मौके मिले जो विशेषज्ञ बल्लेबाज तो थे ही काम चलाऊ स्पिनर भी थे तब उन्हें हर मैच में बोलिंग का मौका मिला 
2011 की टीम में आर अश्विन व हरभजन सिंह विशेषज्ञ स्पिनर थे और लगभग हर मैच खेले पर इन के साथ पियुश चावला भी थे जो मौका मिलने पर अच्छी गेंदबाजी कर लेते थे 
वैसे इन सबके लिए कप्तान व कोच के साथ चयनकर्ताओं की टीम भी पूरी तरह जिम्मेदार है जब से राहुल द्रविड़ को हटा कर रवि शास्त्री को कोच बनाया गया उन्हें कप्तान कोहली का भी पूरजोर समर्थन मिला तब से वे तानाशाह की तरह व्यवहार करने लगे की कौन खिलाङी टीम में होगा कौन बाहर ये वो ही तय करेंगे 
चयनकर्त्ता सिर्फ नाम के बन कर रह गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद जहां मुख्य चयनकर्ता एम एस के प्रसाद को चयन की स्थिति सुधारनी थी औऱ हर सही खिलाङी को मौका मिले इस का प्रबंध करना था पर वे तो कोच रवि शास्त्री के हुक्म के गुलाम बन कर रह गए आंजिक्य रहाणे शुभमन गिल मनिष पांडेय जैसे कितने ही प्लेयर मौके की तलाश का इंतज़ार करते रहे
2011 के विश्वकप विजेता टीम के सदस्य रहे गौतम गंभीर ने अंबाती रायडू के ना चुने जाने पर बहुत सही टिप्पणी की कि रायडू ने जीतने रन बनाये है उतने सभी चयनकर्त्ताओं ने मिल कर भी कुल नहीं बनाये अब सवाल यही रह जाता है की सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई में अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारी के लिए तो गाईडलाईन बना दी तो चयनकर्ता के लिए भी तो कोई लाईन बनाये 
मैंने इस पोस्ट में वर्तमान टीम की कमींया तो बताने का प्रयास किया ही है साथ ही उस की तुलना दो पूर्व विश्व कप विजेताओं से की है मैंने तीनों टीमों के सभी खिलाङियों का वर्णन करने की की है उन सभी प्लेयरों की खासियत व कमी बताने की चेष्टा भी की है
 पर कितना कामयाब रहा ये तो तय मैं नहीं कर सकता आजकल तो घर घर में क्रिकेट के विशेषज्ञ बैठे है तो कृपया मेरी इस पोस्ट के बारे में भी बतायें की मैं कितना सफल कितना असफल रहा I